अचित्त गुणयोग
From जैनकोष
धवला 10/4,2,4, 175/433-434/4 तव्वदिरित्तदव्वजोगो अणेयविहो । तं जहा-सूर-णक्खत्तजोगो चंद-णक्खत्तजोगोगह-णक्खत्तजोगो कोणंगारजोगो चुण्णजोगो मंतजोगो इच्चेवमादओ ।...णोआगमभावजोगो तिविहो गुणजोगो संभवजोगो जुंजणजोगो चेदि । तत्थ गुणजोगो दुविहो सच्चित्तगुजोगो अच्चित्तगुणजोगो चेदि । तत्थ अच्चित्तगुणजोगो जहा रूव-रस-गंध-फासादीहि पोग्गलदव्वजोगो, आगासादीणमप्पप्पगो गुणेहि सह जोगो वा । = तद्व्यतिरिक्त नोआगम द्रव्य योग अनेक प्रकार का है यथा−सूर्य-नक्षत्रयोग, चंद्र-नक्षत्रयोग, कोण अंगारयोग, चूर्णयोग व मंत्रयोग इत्यादि ।....नोआगम भावयोग तीन प्रकार का है । गुणयोग, संभवयोग और योजनायोग । उनमें से गुणयोग दो प्रकार का है−सचित्तगुणयोग और अचित्तगुणयोग । उनमें से अचित्तगुणयोग - जैसे रूप, रस, गंध और स्पर्श आदि गुणों से पुद्गल द्रव्य का योग, अथवा आकाशदि द्रव्यों का अपने-अपने गुणों के साथ योग ।
- विशेष जानकारी के लिए देखें योग - 1।