अनाभोगकृतातिचार
From जैनकोष
भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 612/812/6
उपयुक्तोऽपि सम्यगतिचारं न वेत्ति सोऽनाभोगकृत व्याक्षिप्तचेतसा वा कृतः ...।
अनाभोग कृत - उपयोग देकर भी जिसे अतिचारों का सम्यग्ज्ञान नहीं होता, उसको अनाभोगकृत अतिचार कहते हैं। अथवा मन दूसरी तरफ लगने पर जो अतिचार होता है वह भी अनाभोग कृत है।
- देखें अतिचार - 1.2 ।