अपौरुषेय
From जैनकोष
धवला पुस्तक 13/5,5,50/286/2
अभूत इति भूतम्, भवनीति भव्यम्, भविष्यतीति भविष्यत्, अतीतानागत-वर्तमानकालेष्यस्तीत्यर्थः। एवं सत्यागम्यस्य नित्यत्वम्। सत्येवमागमस्यापौरुषेयत्वं प्रसजतीति चेत्-न, वाच्य-वाचकभावेनवर्ण-पद-पंक्तिभिश्च प्रवाहरूपेण चापौरुषेयत्वाभ्युपगमात्।
= आगम अतीत काल में था इसलिए उसकी भूत संज्ञा है, वर्तमान काल में है इसलिए उसकी भव्य संज्ञा है और भविष्यत् काल मे रहेगा इसलिए उसकी भविष्य संज्ञा है और आगम अतीत, अनागत और वर्तमान काल में है, यह उक्त कथन का तात्पर्य है। इस प्रकार वह आगम नित्य है। प्रश्न - ऐसा होने पर आगम को अपौरुषेयता का प्रसंग आता है। उत्तर - नहीं, क्योंकि वाच्य वाचक भाव से तथा वर्ण, पद व पंक्तियों के द्वारा प्रवाह रूप से आने के कारण आगम को अपौरुषेय स्वीकार किया गया है।
आगम का पौरुषेय व अपौरुषेयपना।-देखें आगम - 6