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From जैनकोष
ज्ञानार्णव/29/20 अर्द्धचंद्रसमाकारं वारुणाक्षरलक्षितम् । स्फुरत्सुधांबुसंसिक्तं चंद्राभं वारुणं पुरम् ।20। =आकार तो आधे चंद्रमा के समान, वारुण बीजाक्षर से चिह्नित और स्फुरायमान अमृतस्वरूप जल से सींचा हुआ ऐसा चंद्रमा सरीखा शुक्लवर्ण वरुणपुर है। यह अप्-मंडल का स्वरूप कहा।
- देखें जल ।