अहो यह उपदेशमाहीं
From जैनकोष
(राग काफी)
अहो यह उपदेशमाहीं, खूब चित्त लगावना ।
होयगा कल्यान तेरा, सुख अनंत बढ़ावना ।।टेक ।।
रहित दूषन विश्वभूषन, देव जिनपति ध्यावना ।
गगनवत निर्मल अचल मुनि, तिनहिं शीस नवावना ।।१ ।।
धर्म अनुकंपा प्रधान, न जीव कोई सतावना ।
सप्ततत्त्वपरीक्षना करि, हृदय श्रद्धा लावना ।।२ ।।
पुद्गलादिकतैं पृथक्, चैतन्य ब्रह्म लखावना ।
या विधि विमल सम्यक्त धरि, शंकादि पंक बहावना ।।३ ।।
रुचैं भव्यनको वचन जे, शठनको न सुहावना ।
चन्द्र लखि जिमि कुमुद विकसै, उपल नहिं विकसावना ।।४ ।।
`भागचन्द' विभाव तजि, अनुभव स्वभावित भावना ।
या बिन शरन्य न अन्य जगतारण्य में कहुँ पावना ।।५ ।।