आछेद्य
From जैनकोष
आहार के छियालीस दोषों में से एक
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 443 -
उद्गम दोष -रायाचोरादीहिं य संजदभिक्खसमं तु दट्ठूणं। बीहेदूण णिजुज्जं अच्छिज्जं होदि णादव्वं ॥443॥
आछेद्य दोष - संयमी साधुओं के भिक्षा के परिश्रम को देख राजा, चोर आदि गृहस्थियों को ऐसा डर दिखाकर ऐसा कहें कि यदि तुम इन साधुओं को भिक्षा नहीं दोगे तो हम तुम्हारा द्रव्य छीन लेंगे ऐसा डर दिखाकर दिया गया आहार वह आछेद्य दोष है ॥443॥
आहार का एक दोष। - देखें आहार - II.4.4-15।