आनपान
From जैनकोष
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 646
उदंचनन्यंचनात्मको मरुदानपानप्राणः।
= नीचे और ऊपर जाना जिसका स्वरूप है, ऐसी वायु श्वासोच्छ्वास या आनप्राण है।
देखें उच्छ्वास ।
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 646
उदंचनन्यंचनात्मको मरुदानपानप्राणः।
= नीचे और ऊपर जाना जिसका स्वरूप है, ऐसी वायु श्वासोच्छ्वास या आनप्राण है।
देखें उच्छ्वास ।