ऐसे साधु सुगुरु कब मिल हैं
From जैनकोष
ऐसे साधु सुगुरु कब मिल हैं ।।टेक ।।
आप तरें अरु परको तारैं, निष्प्रेही निरमल हैं ।।१ ।।
तिलतुषमात्र संग नहिं जाकै, ज्ञान-ध्यान-गुण-बल हैं ।।२ ।।
शान्त दिगम्बर मुद्रा जिनकी, मन्दर तुल्य अचल हैं ।।३ ।।
`भागचन्द' तिनको नित चाहै, ज्यों कमलनि को अलि है ।।४ ।।