औदयिक
From जैनकोष
जीव के पाँच भावों में कर्मोंदय से उत्पन्न एक भाव । इसका जब तक उदय रहता है तब तक कर्म रहते हैं और कर्मों के कारण आत्मा को संसार में भ्रमण करना पड़ता है । महापुराण 54.150
जीव के पाँच भावों में कर्मोंदय से उत्पन्न एक भाव । इसका जब तक उदय रहता है तब तक कर्म रहते हैं और कर्मों के कारण आत्मा को संसार में भ्रमण करना पड़ता है । महापुराण 54.150