काया गागरि, जोझरी, तुम देखो चतुर विचार हो
From जैनकोष
(राग श्रीगौरी)
काया गागरि, जोझरी, तुम देखो चतुर विचार हो ।।टेक ।।
जैसे कुल्हिया कांचकी, जाके विनसत नाहीं वार हो ।।
मांसमयी माटी लई अरु, सानी रुधिर लगाय हो ।
कीन्हीं करम कुम्हारने, जासों काहूकी न वसाय हो ।।१ ।।काया. ।।
और कथा याकी सुनौं, यामैं अध उरध दश ठेह हो ।
जीव सलिल तहाँ थंभ रह्यौ भाई, अद्भुत अचरज येह हो ।।२ ।।काया. ।।
यासौं ममत निवारकैं, नित रहिये प्रभु अनुकूल हो ।
`भूधर' ऐसे ख्याल का भाई, पलक भरोसा भूल हो ।।३ ।।काया. ।।