ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 112 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
संबुक्कमादुवाहा संखा सिप्पी अपादगा य किमी । (112)
जाणंति रसं फासं जे ते बेइंदिया जीवा ॥122॥
अर्थ:
जो रस और स्पर्श को जानने-वाले शंबूक, मातृवाह, शंख, सीप और पैर रहित कृमी आदि हैं, वे दोइन्द्रिय जीव हैं ।
समय-व्याख्या:
द्वीन्द्रियप्रकारसूचनेयम् ।
एते स्पर्शनरसनेन्द्रियावरणक्षयोपशमात् शेषेन्द्रियावरणोदये नोइन्द्रियावरणोदये च सतिस्पर्शरसयोः परिच्छेत्तारो द्वीन्द्रिया अमनसो भवन्तीति ॥११२॥
समय-व्याख्या हिंदी :
यह, द्वीइंद्रिय जीवों के प्रकार की सूचना है।
स्पर्शनेन्द्रिय और रसनेन्द्रिय के (इन दो भावेन्द्रियों के) आवरण के क्षयोपशम के कारण तथा शेष इंद्रियों के (तीन भावेन्द्रियों के) आवरण का उदय तथा मन के (भाव-मन के) आवरण का उदय होने से स्पर्श और रस को जानने वाले यह (शंबूक आदि) जीव मन-रहित द्वीइंद्रिय जीव हैं ॥११२॥