ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 123 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
सुहदुक्खजाणणा वा हिदपरियम्मं च अहिदभीरुत्तं । (123)
जस्स ण विज्जदि णिच्चं तं समणा विंति अज्जीवं ॥133॥
अर्थ:
जिसके सदैव सुख-दु:ख का ज्ञान, हित के लिए उद्यम / प्रयास, अहित से भय नहीं है; उसे श्रमण अजीव कहते हैं ।
समय-व्याख्या:
आकाशादीनामचेतनत्वसामान्ये पुनरनुमानमेतत् ।
सुखदुःखज्ञानस्य हितपरिकर्मणोऽहितभीरुत्वस्य चेति चैतन्यविशेषाणां नित्यमनुप-लब्धेरविद्यमानचैतन्यसामान्या एवाकाशादयोऽजीवा इति ॥१२३॥
समय-व्याख्या हिंदी :
यह पुनश्च, आकाशादि का अचेतनत्व-सामान्य निश्चित करने के लिये अनुमान है ।
आकाशादि को सुख-दुःख का ज्ञान, हित का उद्यम और अहित का भय -- इन चैतन्य-विशेषों की सदा अनुपलब्धि है (अर्थात् यह चैतन्य-विशेष आकाशादि को किसी काल नहीं देखे जाते), इसलिये (ऐसा निश्चित होता है कि) आकाशादि अजीवों को चैतन्य-सामान्य विद्यमान नहीं है ॥१२३॥