ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 124-125 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
संठाणा संघादा वण्णरसप्फासगंधसद्दा य । (124)
पोग्गलदव्वप्पभवा होंति गुणा पज्जया य बहू ॥134॥
अरसमरूवमगंधं अव्वत्तं चेदणागुणमसद्दं । (125)
जाण अलिंगग्गहणं जीवमणिद्दिट्ठसंठाणं ॥135॥
अर्थ:
संस्थान, संघात, वर्ण, रस, स्पर्श, गंध, शब्द इत्यादि अनेक गुण और पर्यायें पुद्गल द्रव्य से उत्पन्न होती हैं ।
जीव को अरस, अरूप, अगंध, अव्यक्त, चेतनागुण सहित, अशब्द, अलिंगग्रहण और अनिर्दिष्ट संस्थान-वाला जानो ।
समय-व्याख्या:
जीवपुद्गलयोः संयोगेऽपि भेदनिबन्धनस्वरूपाख्यानमेतत् ।
यत्खलु शरीरशरीरिसंयोगे स्पर्शरसगन्धवर्णगुणत्वात्सशब्दत्वात्संस्थानसङ्घातादिपर्याय-परिणतत्वाच्च इन्द्रियग्रहणयोग्यं, तत्पुद्गलद्रव्यम् । यत्पुनरस्पर्शरसगन्धवर्णगुणत्वादशब्दत्वाद-निर्दिष्टसंस्थानत्वादव्यक्त त्वादिपर्यायैः परिणतत्वाच्च नेन्द्रियग्रहणयोग्यं, तच्चेतनागुणत्वात रूपिभ्योऽरूपिभ्यश्चाजीवेभ्यो विशिष्टं जीवद्रव्यम् । एवमिह जीवाजीवयोर्वास्तवो भेदःसम्यग्ज्ञानिनां मार्गप्रसिद्धयर्थं प्रतिपादित इति ॥१२४-१२५॥
- इति अजीवपदार्थव्याख्यानं समाप्तम् ।
समय-व्याख्या हिंदी :
जीव-पुद्गल के संयोग में भी, उनके भेद के कारणभूत स्वरूप का यह कथन है (अर्थात् जीव और पुद्गल के संयोग में भी, जिसके द्वारा उनका भेद जाना जा सकता है ऐसे उनके भिन्न-भिन्न स्वरूप का यह कथन है) ।
शरीर और १शरीरी के संयोग में, (१) जो वास्तव में स्पर्श-रस-गंध-वर्ण गुणवाला होने के कारण, सशब्द होने के कारण तथा संस्थान-संघातादि पर्यायोंरूप से परिणत होने के कारण इन्द्रियग्रहणयोग्य है, वह पुद्गल-द्रव्य है, और (२) जो स्पर्श-रस-गंध-वर्ण-गुण रहित होने के कारण, अशब्द होने के कारण, अनिर्दिष्ट-संस्थान होने के कारण तथा २अव्यक्त्वादि पर्यायों-रूप से परिणत होने के कारण इन्द्रियग्रहणयोग्य नहीं है, वह, चेतना-गुण-मय-पने के कारण रूपी तथा अरूपी अजीवों से ३विशिष्ट (भिन्न) ऐसा जीव-द्रव्य है ।
इस प्रकार यहाँ जीव और अजीव का वास्तविक भेद सम्यग्ज्ञानियों के मार्ग की प्रसिद्धि के हेतु प्रतिपादित किया गया ॥१२४-१२५॥
इस प्रकार अजीव-पदार्थ का व्याख्यान समाप्त हुआ ।
दो मूल पदार्थ कहे गये अब (उनके) संयोग-परिणाम से निष्पन्न होने वाले अन्य सात पदार्थों के उपोद्घात के हेतु जीव-कर्म और पुद्गल-कर्म के चक्र का वर्णन किया जाता है ।
१शरीरी = देही, शरीरवाला (अर्थात आत्मा) ।
२अव्यक्त्वादि = अव्यक्त्व आदि, अप्रकटत्व आदि ।
३विशिष्ट = भिन्न, विलक्षण, खास प्रकार का ।