ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 19 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
एवं सदो विणासो असदो भावस्स णत्थि उप्पादो । ।
तावदिओ जीवाणं देवो मणुसोत्ति गदिणामो ॥19॥
अर्थ:
[एवं] इसप्रकार [जीवस्य] जीव को [सतः विनाशः] सत् का विनाश और[असतः उत्पादः] असत् का उत्पाद [न अस्ति] नहीं है; ('देव जन्मता है और मनुष्य मरता है' - ऐसा कहा जाता है उसका यह कारण है कि) [जीवानाम्] जीवों की [देवः मनुष्यः] देव, मनुष्य [इति गतिनाम] ऐसा गति नामकर्म [तावत्] उतने ही काल का होता है ।
समय-व्याख्या:
अत्र सदसतोरविनाशानुत्पादौ स्थितिपक्षत्वेनोपन्यस्तौ । यदि हि जीवो य एव म्रियते स एव जायते, य एव जायते स एव म्रियते, तदेव सतो विनासोऽसत उत्पादश्च नास्तीति व्यवतिष्ठते । यत्तु देवो जायते मनुष्यों म्रियते इति व्यपदिश्यते तदवधृतकालदेवमनुष्यत्वपर्याय निर्वर्तकस्य देवमनुष्यगतिनाम्नस्तन्मात्रत्वादविरुद्धम् । यथा हि महतो वेणुदण्डस्यैकस्य क्रमवृत्तीन्येनकानि पर्वाण्यात्मीयात्मीयप्रमाणावच्छिन्नत्वात् पर्वान्तरमगच्छन्ति स्वस्थानेषु भावभाज्जि परस्थानेष्वभावभाज्जि भवन्ति, वेणुदण्डस्तु सर्वेष्वपि पर्वस्थानेषु भावभागपि पर्वान्तरसंबन्धेन पर्वान्तरसंबन्धाभावादभावभाग्भवति; तथा निरवधित्रिकालावस्थायिनो जीवद्रव्यस्यैकस्य क्रमवृत्तयोऽनेके मनुष्यत्वादिपर्याया आत्मीयात्मीयप्रमाणावछिन्नत्वात् पर्यान्तरमगच्छन्त: स्वस्थानेषु भावभाज: परस्थानेष्वभावभाजो भवन्ति, जीवद्रव्यं तु सर्वपर्यायस्थानेषु भावभागपि पर्यायान्तरसंबन्धेन पर्यायान्तरसंबन्धाभावादभावभाग्भवति ॥१९॥
समय-व्याख्या हिंदी :
यहाँ, सत् का अविनाश और असत् का अनुत्पाद ध्रुवता के पक्ष से कहा है (अर्थात ध्रुवता की अपेक्षा से सत् का विनाश और असत् का उत्पाद नहीं होता -- ऐसा इस गाथा में कहा है) ।
यदि वास्तव में जो जीव मरता है वही जन्मता है, जो जीव जन्मता है वही मरता है, तो इस प्रकार सत् का विनाश और असत् का उत्पाद नहीं है ऐसा निश्चित होता है । और 'देव जन्मता है और मनुष्य मरता है' ऐसा जो कहा जाता है वह (भी) अविरुद्ध है क्योंकि मर्यादित काल की देवत्व-पर्याय और मनुष्यत्व-पर्याय को रचाने वाले देव-गति-नाम-कर्म और मनुष्य-गति-नाम-कर्म मात्र उतने काल जितने होते हैं । जिस प्रकार एक बड़े बांस के क्रमवर्ती अनेक *पर्व अपने-अपने माप में मर्यादित होने से अन्य पर्व में न जाते हुए अपने-अपने स्थानों में भाव-वाले (विद्यमान) हैं और पर स्थानों में अभाव-वाले (अविद्यमान) हैं तथा बाँस तो समस्त पर्व-स्थानों में भाव-वाला होने पर भी अन्य पर्व के सम्बन्ध द्वारा अन्य पर्व के सम्बन्ध का अभाव होने से अभाव-वाला (भी) है; उसी प्रकार निरवधि त्रिकाल स्थित रहनेवाले एक जीव-द्रव्य की क्रमवर्ती अनेक मनुष्यत्वादि पर्याय अपने-अपने माप में मर्यादित होने से अन्य पर्याय में न जाती हुई अपने-अपने स्थानों में भाव-वाली है और पर स्थानों में अभाव-वाली है तथा जीव-द्रव्य तो सर्व-पर्याय-स्थानों में भाव-वाला होने पर भी अन्य पर्याय के सम्बन्ध द्वारा अन्य पर्याय के सम्बन्ध का अभाव होने से अभाव-वाला (भी) है ॥१९॥
*पर्व = एक गाँठ से दूसरी गाँठ तक का भाग; पोर