ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 29 - तात्पर्य-वृत्ति
From जैनकोष
पाणेहिं चदुहिं जीवदि जीविस्सदि जो हु जीविदो पुव्वं । (29)
सो जीवो पाणा पुण बल मिंदियमाउ उस्सासो ॥30॥
अर्थ:
जो चार प्राणों से जीता है, जिएगा और पहले जीता था, वह जीव है; तथा प्राण बल, इन्द्रिय, आयु और श्वासोच्छ्वास हैं ।
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
अब जीवत्व गुण का व्याख्यान करते हैं--
[पाणेहिं] इत्यादि पदखण्डना रूप से व्याख्यान करते हैं -- [पाणेहिं चदुहिं जीवदि] यद्यपि शुद्ध निश्चय से शुद्ध चैतन्य आदि प्राणों से जीता है; तथापि अनुपचरित असद्भूत व्यवहार से द्रव्यरूप तथा अशुद्ध निश्चयनय से भावरूप चार प्राणों द्वारा संसार अवस्था में वर्तमान काल में जीता है; [जीविस्सदि] भविष्यकाल में जिएगा। [जो हु] जो स्पष्ट रूप से [जीविदो पुव्वं] पूर्वकाल में जीता था, [सो जीवो] वह तीनों काल में भी चार प्राण से सहित जीव है। [पाणा पुण बल मिंदियमाउ उस्सासो] वे पूर्वोक्त द्रव्य-भाव प्राण भी अभेद से बल, इन्द्रिय, आयु और उच्छ्वास लक्षण रूप हैं । इस सूत्र में मन, वचन, काय के निरोधपूर्वक पंचेन्द्रिय विषयों से व्यावर्तन के बल द्वारा शुद्ध चैतन्यादि शुद्ध प्राण सहित शुद्ध जीवास्तिकाय ही उपादेय रूप से ध्यान करने योग्य है -- यह भावार्थ है ॥३०॥