ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 2 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
समणमुहुग्गदमट्ठं चदुगदिविणिवारणं सणिव्वाणं ।
एसो पणमिय सिरसा समयमिणं सुणह वोच्छामि ॥2॥
अर्थ:
श्रमण के मुख से निकले हुए अर्थमय, चतुर्गति का निवारण करनेवाले, निर्वाण सहित (निर्वाण को कारणभूत) इस समय को सिरसा प्रणाम कर मैं इसे कहूँगा, तुम सुनो! ।
समय-व्याख्या:
समयो ह्यागम: । तस्य प्रमाणपूर्वकमात्मनाभिधानमत्र प्रतिज्ञातम् । युज्यते हि स प्रणन्तुमभिधातुं चाप्तोपदिष्टत्वे सति सफलत्वात् । तत्राप्तोपदिष्टत्वमस्य श्रमणमुखोद्गतार्थत्वात् । श्रमणा हि महाश्रमणा: सर्ववीतरागा: । अर्थ: पुनरनेकशब्दसम्बन्धेनाभिधीयमानो वस्तुतयेकोऽभिधेय: । सफलत्वं तु चतसृणां नारकतिर्यग्मनुष्यदेवत्वलक्षणानां गतीनां निवारणत्वात् पारतंत्र्यनिवृत्तिलक्षणस्य निर्वाणस्य शुद्धात्मतत्त्वोपलम्भरूपस्य परम्परया कारणत्वात् स्वातंत्र्यप्राप्तिलक्षणस्य च फलस्य सद्भावादिति ॥२॥
समय-व्याख्या हिंदी :
समय अर्थात आगम; उसे प्रणाम करके स्वयं उसका कथन करेंगे ऐसी यहाँ (श्रीमद-भगवत्कुंद-कुन्दाचार्य-देव ने) प्रतिज्ञा की है । वह (समय) प्रणाम करने एवं कथन करने योग्य है, क्योंकि वह आप्त द्वारा उपदिष्ट होने से सफल है । वहाँ, उसका आप्त द्वारा उपदिष्ट-पना इसलिए है कि जिससे वह 'श्रमण के मुख से निकला हुआ अर्थमय' है । 'श्रमण' अर्थात् महा-श्रमण--सर्वज्ञ-वीतराग-देव; और 'अर्थ' अर्थात अनेक शब्दों के सम्बन्ध से कहा जानेवाला, वस्तु-रूप से एक ऐसा पदार्थ । पुनश्च उसकी (समय की) सफलता इसलिए है की जिससे वह समय (१) 'नारकत्व, तिर्यन्चत्व, मनुषत्व तथा देवत्व-स्वरूप चार गतियों का निवारण' करने के कारण और (२) शुद्धात्म-तत्त्व की उपलब्धि-रूप 'निर्वाण का परम्परा से कारण' होने के कारण (१) परतन्त्रता-निवृत्ति जिसका लक्षण है और (२) स्वतंत्रता-प्राप्ति जिसका लक्षण है -- ऐसे फल सहित है ॥२॥