ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 41 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
दंसणमवि चक्खुजुदं अचक्खुजुदमवि य ओहिणा सहियं । (41)
अणिधणमणन्तविसयं केवलियं चावि पण्णत्तं ॥48॥
अर्थ:
दर्शन भी चक्षु-दर्शन, अचक्षु-दर्शन, अवधि-दर्शन और अनिधन / अविनाशी अनंत विषय वाले केवलदर्शन के भेद से चार प्रकार का कहा गया है ।
समय-व्याख्या:
दर्शनोपयोगविशेषाणां नामस्वरूपाभिधानमेतत् । यक्षुर्दर्शनमचक्षुर्दर्शनमवधिदर्शनं केवलदर्शनमिति नामाभिधानम् । आत्मा ह्यनन्तसर्वात्मप्रदेशव्यापिविशुद्धदर्शनसामान्यात्मा । स खल्वनादिदर्शनावरणकर्मावच्छन्नप्रदेश: सन्, यत्तदावरणक्षयोपशमाच्चक्षुरिन्द्रियावलम्बाच्च मूर्तद्रव्यं विकलं सामान्येनावबुध्यते तच्चक्षुर्दर्शनम्, यत्तदावरणक्षयोपशमाच्चक्षुर्वर्जितेतरचक्षुरिन्द्रियानिन्द्रियावलम्बाच्च मूर्तामूर्तद्रव्यं विकलं सामान्येनावबुध्यते तद᳭वधिदर्शनम्, यत्सकलावरणात्यंतक्षये केवल एव मूर्तामूर्तद्रव्यं सकलं सामान्येनावबुध्यते तत्स्वाभाविकं केवलदर्शनमिति स्वरूपाभिधानम् ॥४१॥
समय-व्याख्या हिंदी :
यह, दर्शनोपयोग के भेदों के नाम और स्वरूप का कथन है ।
- चक्षु-दर्शन,
- अचक्षु-दर्शन,
- अवधि-दर्शन,
- केवलदर्शन
(अब उनके स्वरूप का कथन किया जाता है :- ) आत्मा वास्तव में अनंत, सर्व आत्म-प्रदेशों में व्यापक, विशुद्ध दर्शन-सामान्य-स्वरूप है । वह (आत्मा) वास्तव में अनादि दर्शनावरण-कर्म से आच्छादित प्रदेशोंवाला वर्तता हुआ,
- उस प्रकार (चक्षु-दर्शन) के आवरण के क्षयोपशम से और चक्षु-इन्द्रिय के अवलम्बन से मूर्त द्रव्य का विकल-रूप से सामान्यत: अवबोधन करता है वह चक्षु-दर्शन है,
- उस प्रकार के आवरण के क्षयोपशम से तथा चक्षु के अतिरिक्त शेष चार इन्द्रियों और मन के अवलम्बन से मूर्त-अमूर्त द्रव्य को विकल-रूप से सामान्यत: अवबोधन करता है वह अचक्षु-दर्शन है,
- उस प्रकार के आवरण के क्षयोपशम से ही मूर्त-द्रव्य को विकल-रूप से सामान्यत: अवबोधन करता है, वह अवधि-दर्शन है,
- समस्त आवरण के अत्यन्त क्षय से, केवल ही (आत्मा अकेला ही), मूर्त-अमूर्त द्रव्य को सकल-रूप से सामान्यत: अवबोधन करता है वह स्वाभाविक केवल-दर्शन है