ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 42 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
ण वियप्पदि णाणादो णाणी णाणाणि होंति णेगाणि । (42)
तम्हा दु विस्सरूवं भणियं दवियत्ति णाणीहिं ॥49॥
अर्थ:
ज्ञानी को ज्ञान से पृथक् नहीं किया जा सकता है । ज्ञान अनेक हैं, इसलिये ज्ञानियों ने द्रव्य को विश्वरूप / अनेक रूप कहा है ।
समय-व्याख्या:
एकस्यात्मनोऽनेकज्ञानात्मकत्वसमर्थनमेतत् । न तावज्ज्ञानी ज्ञानात्पृथग्भवति, द्वयोरप्येकास्तिनिर्वृत्तत्वेनैकद्रव्यत्वात्, द्वयोरप्यभिन्नप्रदेशत्वेनैकक्षेत्रत्वात्, द्वयोरप्येकसमयनिर्वृत्तत्वेनैककालत्वात्, द्वयोरप्येकस्वभावत्वेनैकभावत्वात् । न चैवमुच्यमानेप्येकस्मिन्नात्मन्याभिनिबोधिकादीन्यनेकानि ज्ञानानि विरुध्यंते, द्रव्यस्य विश्वरूपत्वात् । द्रव्यं हि सहक्रमप्रवृत्तानंतगुणपर्यायाधारतयानंतरूपत्वादेकमपि विश्वरूपमभिधीयत इति ॥४२॥
समय-व्याख्या हिंदी :
एक आत्मा अनेक ज्ञानात्मक होने का समर्थन है ।
प्रथम तो ज्ञानी (आत्मा) ज्ञान से पृथक नहीं है; क्योंकि
- दोनों एक अस्तित्व से रचित होने से दोनों को एक-द्रव्यपना है,
- दोनों के अभिन्न प्रदेश होने से दोनों को एक-क्षेत्रपना है,
- दोनों एक समय में रचे जाते होने से दोनों को एक-कालपना है,
- दोनों का एक स्वभाव होने से दोनों को एक-भावपना है ।