ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 43 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
जदि हवदि दव्वदमण्णं गुणदो हि गुणा य दव्वदो अण्णे । (43)
दव्वाणंतियमहवा दव्वाभावं पकुव्वंति ॥50॥
अर्थ:
यदि द्रव्य गुण से (सर्वथा) अन्य हो तथा गुण द्रव्य से अन्य हों तो (या तो) द्रव्य की अनन्तता होगी या द्रव्य का अभाव हो जाएगा ।
समय-व्याख्या:
द्रव्यस्य गुणेभ्यो भेदे, गुणानां च द्रव्याद᳭भेदे दोषोपन्यासोऽयम् । गुणा हि क्वचिदाश्रिता: । यत्राश्रितास्तद᳭द्रव्यं । तच्चेदन्यद᳭गुणभ्य: । पुनरपि गुणा: क्वचिदाश्रिता: । यत्राश्रितास्तद᳭द्रव्यं । तदपि अन्यच्चेदगुणेभ्य: । पुनरपि गुणा: क्वचिदाश्रिता: । यत्राश्रितास्तद᳭द्रव्यं । तदप्यन्यदेव गुणेभ्य: । एवं द्रव्यस्य गुणेभ्यो भेदे भवति द्रव्यानंत्यम् । द्रव्यं हि गुणानां समुदाय: । गुणाश्चेदन्ये समुदायात्, को नाम समुदाय: । एवं गुणानां द्रव्याद᳭भेदे भवति द्रव्याभाव इति ॥४३॥
समय-व्याख्या हिंदी :
द्रव्य का गुणों से भिन्नत्व हो और गुणों का द्रव्य से भिन्नत्व हो तो दोष आता है उसका यह कथन है ।
गुण वास्तव में किसी के आश्रय से होते हैं; (वे) जिसके आश्रित हों वह द्रव्य होता है । वह (द्रव्य) यदि गुणों से अन्य (भिन्न) हो तो--फिर भी, गुण किसी के आश्रित होंगे; (वे) जिसके आश्रित हों वह द्रव्य होता है । वह यदि गुणों से अन्य हो तो-- फिर भी गुण किसी के आश्रित होंगे; (वे) जिसके आश्रित हों वह द्रव्य होता है । वह भी गुणों से अन्य ही हो । -- इस प्रकार, यदि द्रव्य का गुणों से भिन्नत्व हो तो, द्रव्य की अनन्तता हो ।
वास्तव में द्रव्य अर्थात् गुणों का समुदाय । गुण यदि समुदाय से अन्य हो तो समुदाय कैसा ? (अर्थात् यदि गुणों को समुदाय से भिन्न माना जाय तो समुदाय कहाँ से घटित होगा ? अर्थात् द्रव्य ही कहाँ से घटित होगा ?) इस प्रकार, यदि गुणों का द्रव्य से भिन्नत्व हो तो, द्रव्य का अभाव हो ॥४३॥