ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 56 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
कम्मं वेदयमाणो जीवो भावं करेदि जारिसयं । (56)
सो तस्स तेण कत्ता हवदित्ति य सासणे पढिदं ॥63॥
अर्थ:
कर्म का वेदन करता हुआ जीव जैसा भाव करता है, वह उस रूप से उसका कर्ता है ऐसा शासन में कहा है ।
समय-व्याख्या:
जीवस्यौदयिकादिभावानां कर्तृत्वप्रकारोक्तिरियम् । जीवेन हि द्रव्यकर्म व्यवहारनयेनानुभूयते; तच्चानुभूयमानं जीवभावानां निमित्तमात्रमुपवर्ण्यते । तस्तिन्निमित्तमात्रभूते जीवेन कर्तृभूतेनात्मन: कर्मभूतो भाव: क्रियते । अमुना यो येन प्रकारेण जीवेन भाव: क्रियते, स जीवस्तस्य भावस्य तेन प्रकारेण कर्ता भवतीति ॥५६॥
समय-व्याख्या हिंदी :
यह, जीव के औदयिकादि भावों के कर्तृत्व-प्रकार का कथन है ।
जीव द्वारा द्रव्यकर्म व्यवयहारनय से अनुभवमें आता है; और वह अनुभव में आता हुआ जीवभावों का निमित्तमात्र कहलाता है । वह (द्रव्यकर्म) निमित्तमात्र होने से , जीव द्वारा कर्तरूप से अपना कर्मरूप (कार्यरूप) भाव किया जाता है । इसलिये जो भाव जिस प्रकार से जीव द्वारा किया जाता है, उस भाव का उस प्रकार से वह जीव कर्ता है ॥५६॥