ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 79 - तात्पर्य-वृत्ति
From जैनकोष
णिच्चो णाणवगासो ण सावगासो पदेसदो भेत्ता । (79)
खंदाणं वि य कत्ता पविभत्ता कालसंखाणं ॥87॥
अर्थ:
प्रदेश की अपेक्षा परमाणु नित्य है, न वह अनवकाश है और न सावकाश है, स्कन्धों का भेत्ता / भेदन करने वाला है, कर्ता है, काल और संख्या का प्रविभाग करनेवाला है।
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
[णिच्चो] नित्य है । किस अपेक्षा नित्य है ? [पदेसदो] प्रदेश की अपेक्षा नित्य है । वास्तव में परमाणु का एक प्रदेश होने से सर्वदा ही अविनश्वर होने के कारण नित्य है । [णाणवगासो] अनवकाश नहीं है, किन्तु एक-प्रदेश होने से अपने वर्णादि गुणों को अवकाश देने के कारण सावकाश है । [ण सावगासो] सावकाश नहीं है, किन्तु एक प्रदेश होने से द्वितीय आदि प्रदेश का अभाव होने के कारण निरवकाश है । [भेत्ताखंदाणं] स्कन्धों का भेत्ता / भेदन करने वाला है । [कत्ता अवि य] और जीव के समान स्कन्धों का कर्ता भी है ।
वह इसप्रकार -- जैसे यह जीव प्रदेश-गत रागादि विकल्पों रूप स्नेह से रहित हो परिणमित होता हुआ कर्म-स्कन्धों का भेत्ता, विनाशक है; उसीप्रकार परमाणु भी एक प्रदेश-गत स्नेह-भाव से रहित हो परिणमित होता हुआ स्कन्धों के विघटन काल में भेत्ता, भेदक होता है । जैसे वह ही जीव स्नेह से रहित परमात्म-तत्त्व से विपरीत होने के कारण स्व-प्रदेश-गत मिथ्यात्व-रागादि स्निग्ध भाव से परिणमित होता हुआ नवीन ज्ञानावरणादि कर्म-स्कन्धों का कर्ता होता है; उसीप्रकार वह ही परमाणु एक प्रदेश-गत स्निग्ध भाव से परिणत होता हुआ द्वयणुक आदि स्कन्धों का कर्ता होता है । यहाँ जो वह स्कन्धों का भेदक कहा है, वह कार्य परमाणु कहलाता है और जो उन्हें करने वाला है, वह कारण परमाणु है; इसप्रकार कार्य-कारण के भेद से परमाणु दो प्रकार का है । वैसा ही कहा भी है 'स्कन्ध के भेद से पहला अर्थात् कार्य परमाणु और स्कन्धों का जनक दूसरा अर्थात् कारण परमाणु है ।'
अथवा भेद विषय में दूसरा व्याख्यान किया जाता है यह परमाणु है, यह परमाणु क्यों है ? एक प्रदेशी होने के कारण, बहु-प्रदेशी स्कन्धों से भिन्न होने की अपेक्षा यह परमाणु है । यह स्कन्ध है । यह स्कन्ध क्यों है ? बहु-प्रदेशी होने के कारण, एक प्रदेशी परमाणु से भिन्न होने की अपेक्षा स्कन्ध है । [पविभत्ता कालसंखाणं] जीव के समान ही काल और संख्या का प्रविभागी है । जैसे एक प्रदेश में स्थित एक समय-वर्ती केवल-ज्ञान अंश द्वारा भगवान केवली समय-रूप व्यवहार काल के और संख्या के प्रविभक्त, परिच्छेदक, ज्ञायक हैं; उसीप्रकार परमाणु भी मंदगति से अणु से दूसरे अणु का व्यतिक्रमण / उल्लंघन लक्षण एक प्रदेश द्वारा समय-रूप व्यवहार काल का और संख्या का प्रविभक्त, भेदक होता है ।
संख्या कहते हैं द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव रूप से संख्या चार प्रकार की है; और वह भी प्रत्येक जघन्य और उत्कृष्ट के भेद से दो-दो प्रकार की है ।
- एक परमाणुरूप जघन्य द्रव्य-संख्या है, अनन्त परमाणुओं के समूह रूप उत्कृष्ट द्रव्य संख्या है ।
- एक प्रदेश रूप जघन्य क्षेत्र संख्या है, अनन्त-प्रदेश रूप उत्कृष्ट क्षेत्र संख्या है ।
- एक समय रूप जघन्य व्यवहार-काल संख्या है; अनन्त समय रूप उत्कृष्ट व्यवहार काल संख्या है ।
- परमाणु द्रव्य में वर्णादि की जो सर्व जघन्य शक्ति है, वह जघन्य भाव संख्या है; उसी परमाणु द्रव्य में जो सर्वोत्कृष्ट वर्णादि शक्ति है, वह उत्कृष्ट भाव संख्या है ।