ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 80 - तात्पर्य-वृत्ति
From जैनकोष
एयरसवण्णगंधं दो फासं सद्दकारणमसद्दं । (80)
खंदंतरिदं दव्वं परमाणु तं वियाणाहि ॥88॥
अर्थ:
जो एक रस, एक वर्ण, एक गंध, दो स्पर्श वाला है, शब्द का कारण और अशब्द है, स्कन्धों के अन्दर है, उसे परमाणु द्रव्य जानो।
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
[एयरसवण्णगंधं दोफासं] एक रस-वर्ण-गंध, दो स्पर्श हैं । वह इसप्रकार -- वहाँ परमाणु में
- तिक्त आदि पाँच रस पर्यायों में से एक समय में कोई एक रस रहता है ।
- शुक्ल आदि पाँच वर्ण पर्यायों में से एक समय में कोई एक वर्ण रहता है ।
- सुरभि-दुरभि रूप दो गंध पर्यायों में से एक समय में कोई एक गंध रहती है ।
- शीत-स्निग्ध, शीत-रूक्ष, उष्ण-स्निग्ध, उष्ण-रूक्ष, इन चार स्पर्श पर्याय के युगलों में से एक समय में कोई एक युगल स्पर्श रहता है ।
अथवा [स्कंदांतरित] इसका क्या अर्थ है ? स्कन्ध से पहले ही वह उससे भिन्न है -- ऐसा अभिप्राय है ॥८८॥
इस प्रकार परमाणु द्रव्य के वर्णादि गुणों का स्वरूप और शब्द आदि पर्याय के स्वरूप-कथन की अपेक्षा पाँचवीं गाथा पूर्ण हुई ।
इस प्रकार परमाणु द्रव्य-रूप से दूसरे स्थल में समुदाय की अपेक्षा पाँच गाथायें पूर्ण हुईं ।