ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 92 - तात्पर्य-वृत्ति
From जैनकोष
जम्हा उवरिट्ठाणं सिद्धाणं जिणवरेहिं पण्णत्तं । (92)
तम्हा गमणट्ठाणं आयासे जाण णत्थि त्ति ॥100॥
अर्थ:
जिसकारण सिद्धों की लोक के ऊपर स्थिति जिनवरों ने कही है, उसकारण आकाश में गति- स्थिति (हेतुता) नहीं है ऐसा जानो।
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
जिस कारण जिनवरों ने सिद्धों का ऊपर स्थान कहा है, उस कारण आकाश में गमन-स्थिति (हेतुता) नहीं है, ऐसा जानो ।
वह इसप्रकार -- जिस कारण पूर्व गाथा में लोकाग्र में अवस्थान कहा गया है । वहाँ अवस्थान किनका कहा गया है ? *अंजनसिद्ध, पादुकासिद्ध, गुटिकासिद्ध, दिग्विजयसिद्ध, खड्ग (तलवार) सिद्ध इत्यादि लौकिक सिद्धियों से विलक्षण, सम्यक्त्व आदि आठ गुणों में अन्तर्भूत निर्नाम, निर्गोत्र, अमूर्तत्व आदि अनन्तगुण लक्षण सिद्धों का वहाँ अवस्थान कहा गया है; इससे ही ज्ञात होता है कि आकाश में गति-स्थिति की कारणता नहीं है, अपितु धर्म-अधर्म ही गति-स्थिति के कारण हैं, ऐसा अभिप्राय है ॥१००॥
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- Khadga-siddhi - Power to be invincible in battle with a sword
- Anjana-siddhi - Power to remove ordinary lack of sight by using a magical ointment that enables the user to see Devas, Nagas, and other spirits
- Padalepa-siddhi - Power to be swift of foot by using a magical ointment that, when applied to the feet, allows the user to run with incredible swiftness
- Antardhana-siddhi - Power to become invisible
- Rasayana-siddhi - the power of rejuvenation and long life through obtaining the elixir of life by way of an alchemical process
- Khechara-siddhi - Power to levitate or to fly through the sky
- Bhuchara-siddhi - Power to move freely through the earth, mountains, and solid walls
- Patala-siddhi - Power to have command over the spirits of the underworld