ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 92 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
जम्हा उवरिट्ठाणं सिद्धाणं जिणवरेहिं पण्णत्तं । (92)
तम्हा गमणट्ठाणं आयासे जाण णत्थि त्ति ॥100॥
अर्थ:
जिसकारण सिद्धों की लोक के ऊपर स्थिति जिनवरों ने कही है, उसकारण आकाश में गति- स्थिति (हेतुता) नहीं है ऐसा जानो।
समय-व्याख्या:
स्थितिपक्षोपन्यासोऽयम् ।
यतो गत्वा भगवन्तः सिद्धाः लोकोपर्यवतिष्ठन्ते, ततो गतिस्थितिहेतुत्वमाकाशेनास्तीति निश्चेतव्यम् । लोकालोकावच्छेदकौ धर्माधर्मावेव गतिस्थितिहेतू मन्तव्याविति ॥९२॥
समय-व्याख्या हिंदी :
(गतिपक्ष सम्बन्धी कथन करने के पश्चात) यह, स्थिति-पक्ष सम्बन्धी कथन है ।
जिससे सिद्ध-भगवन्त गमन करके लोक के ऊपर स्थिर होते हैं (अर्थात लोक के ऊपर गति-पूर्वक स्थिति करते हैं), उससे गति-स्थिति-हेतुत्व आकाश में नहीं है ऐसा निश्चय करना, लोक और अलोक का विभाग करने वाले धर्म तथा अधर्म को ही गति तथा स्थिति के हेतु मानना ॥९२॥