ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 99 - तात्पर्य-वृत्ति
From जैनकोष
कालो परिणामभवो परिणामो दव्वकालसंभूदो । (99)
दोण्हं एस सहावो कालो खणभंगुरो णियदो ॥107॥
अर्थ:
काल परिणाम से उत्पन्न होता है, परिणाम द्रव्य-काल से उत्पन्न होता है, यह दोनों का स्वभाव है; काल क्षणभंगुर तथा नित्य है।
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
[कालो] समय, निमिष, घटिका, दिवस आदि रूप व्यवहार-काल है । और वह कैसा है ? [परिणामभवो] मंद-गति-रूप से अणु के द्वारा दूसरे अणु का व्यतिक्रमण / उल्लंघन करने रूप, नयन-पुट-विघटन / नेत्र पलकों के खुलने रूप, जल-भाजन-हस्त-विज्ञान-रूप पुरुष की चेष्टा-मय, सूर्य-बिम्ब के आने रूप, इसप्रकार के स्वभाव-वाले पुद्गल-द्रव्य की क्रिया पर्याय रूप परिणाम हैं; उनसे व्यक्त होने के कारण, प्रगट किये जाने के कारण हेतु होने से व्यवहार की अपेक्षा पुद्गल परिणाम-भव है, ऐसा कहा जाता है । परमार्थ से कालाणु-द्रव्य-रूप निश्चय-काल की पर्याय [परिणामो दव्वकालसंभूदो] अणु के द्वारा दूसरे अणु का उल्लंघन करना इत्यादि पूर्वोक्त पुद्गल परिणाम, पाठक / पढ़ने वाले को शीतकाल में अग्नि के समान, कुम्भकार द्वारा चक्र घुमाने के विषय में नीचे स्थित शिला के समान बहिरंग सहकारी कारणभूत कालाणु रूप द्रव्यकाल से उत्पन्न होने के कारण द्रव्यकाल-संभूत है । [दोण्हं एस सहाओ] निश्चय-व्यवहार दोनों ही कालों का यह पूर्वोक्त स्वभाव है । वह व्यवहारकाल किस रूप है ? पुद्गल परिणाम से व्यक्त होने के कारण परिणाम से जन्य / उत्पन्न होने योग्य है । निश्चय-काल तो परिणाम का जनक / परिणाम को उत्पन्न करनेवाला है । [कालो खणभंगुरो] समय-रूप व्यवहार काल क्षण-भंगुर है, [णियदो] अपने गुण-पर्यायों का आधार होने से सर्वदा ही अविनश्वर होने के कारण द्रव्य-काल नित्य है ।
यहाँ यद्यपि काल-लब्धि के वश से भेदा-भेद-रत्नत्रय-लक्षण मोक्षमार्ग को प्राप्त कर जीव रागादि रहित नित्यानन्द एक स्वभाव-मय उपादेय-भूत पारमार्थिक सुख को साधते हैं; तथापि उनका उपादान कारण जीव है; काल नहीं, ऐसा अभिप्राय है । वैसा ही कहा भी है 'आत्मारूप उपादान से सिद्ध दशा प्रगट होती है' ॥१०७॥