ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 137 - तात्पर्य-वृत्ति
From जैनकोष
जध ते णभप्पदेसा तधप्पदेसा हवंति सेसाणं । (137)
अपदेसो परमाणू तेण पदेसुब्भवो भणिदो ॥148॥
अर्थ:
जैसे वे आकाश के प्रदेश हैं,वैसे ही शेष द्रव्यों के प्रदेश हैं । परमाणु अप्रदेशी है, उसके द्वारा प्रदेशों (को मापने सम्बन्धी) की उत्पत्ति कही गई है ।
तात्पर्य-वृत्ति:
अथ यदेवाकाशस्य परमाणुव्याप्तक्षेत्रं प्रदेश-लक्षणमुक्तं शेषद्रव्यप्रदेशानां तदेवेति सूचयति --
जध ते णभप्पदेसा यथा ते प्रसिद्धाः परमाणु-व्याप्तक्षेत्रप्रमाणाकाशप्रदेशाः तधप्पदेसा हवंति सेसाणं तेनैवाकाशप्रदेशप्रमाणेन प्रदेशा भवन्ति । केषाम् । शुद्धबुद्धैकस्वभावं यत्परमात्मद्रव्यं तत्प्रभृतिशेषद्रव्याणाम् । अपदेसो परमाणू अप्रदेशो द्वितीयादि-प्रदेशरहितो योऽसौ पुद्गलपरमाणुः तेण पदेसुब्भवो भणिदो तेन परमाणुना प्रदेशस्योद्भव उत्पत्तिर्भणिता । परमाणुव्याप्तक्षेत्रं प्रदेशो भवति । तदग्रे विस्तरेण कथयति इह तु सूचितमेव ॥१४८॥
एवं पञ्चमस्थले स्वतन्त्रगाथाद्वयं गतम् ।
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
[जध ते णभप्पदेसा] जैसे वे प्रसिद्ध परमाणु से व्याप्त क्षेत्र के बराबर आकाश के प्रदेश हैं [तधप्पदेसा हवंति सेसाणं] उसी आकाश के प्रदेश के प्रमाण से प्रदेश हैं । आकाश प्रदेश के प्रमाण से किनके प्रदेश हैं? शुद्ध-बुद्ध एक स्वभाव जो परमात्मद्रव्य तत्प्रभृति शेष द्रव्यों के प्रदेश हैं । [अपदेसो परमाणु] अप्रदेश-दूसरे आदि प्रदेशों से रहित जो वह पुद्गल परमाणु है, [तेण पदेसुब्भवो भणिदो] उस परमाणु द्वारा प्रदेशों की उत्पत्ति कही गई है । परमाणु से व्याप्त क्षेत्र प्रदेश है । वह आगे (१५१वीं गाथा में) विस्तार से कहा जायेगा, यहाँ तो सूचना मात्र दी है ॥१४८॥