ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 146 - तत्त्व-प्रदीपिका
From जैनकोष
इंदियपाणो य तधा बलपाणो तह य आउपाणो य । (146)
आणप्पाणप्पाणो जीवाणं होंति पाणा ते ॥157॥
अर्थ:
[इन्द्रिय प्राण: च] इन्द्रिय प्राण, [तथा बलप्राण:] बलप्राण, [तथा च आयुःप्राण:] आयुप्राण [च] और [आनपानप्राण:] श्वासोच्छ्वास प्राण; [ते] ये (चार) [जीवानां] जीवों के [प्राणा:] प्राण [भवन्ति] हैं ।
तत्त्व-प्रदीपिका:
अथ के प्राणा इत्यावेदयति -
स्पर्शनरसनघ्राणचक्षु:श्रोत्रपञ्चकमिन्द्रियप्राणा:, कायवाङ्मनस्त्रयं बलप्राणा:, भवधारणनिमित्तमायु:प्राण: । उदञ्चनन्यञ्चनात्मको मरुदानपानप्राण: ॥१४६॥
तत्त्व-प्रदीपिका हिंदी :
- स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र -- यह पाँच इन्द्रियप्राण हैं;
- काय, वचन और मन -- यह तीन बलप्राण हैं,
- भव धारण का निमित्त (अर्थात् मनुष्यादि पर्याय की स्थिति का निमित्त) आयुप्राण है;
- नीचे और ऊपर जाना जिसका स्वरूप है ऐसी वायु (श्वास) श्वासोच्छ्वास प्राण है ॥१४६॥