ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 147 - तत्त्व-प्रदीपिका
From जैनकोष
पाणेहिं चदुहिं जीवदि जीविस्सदि जो हि जीविदो पुव्वं । (147)
सो जीवो पाणा पुण पोग्गलदव्वेहिं णिव्वत्ता ॥159॥
अर्थ:
[यः हि] जो [चतुर्भि: प्राणै:] चार प्राणों से [जीवति] जीता है, [जीविष्यति] जियेगा [जीवित: पूर्वं] और पहले जीता था, [सः जीव:] वह जीव है । [पुन:] फिर भी [प्राणा:] प्राण तो [पुद्गलद्रव्यै: निर्वृत्ता:] पुद्गल द्रव्यों से निष्पन्न (रचित) हैं ।
तत्त्व-प्रदीपिका:
अथ प्रणानां निरुक्त्या जीवत्वहेतुत्वं पौद्गलिकत्वं च सूत्रयति -
प्राणसामान्येन जीवति जीविष्यति जीवितवांश्च पूर्वमिति जीव: । एवमनादिसंतानप्रवर्तमानतया त्रिसमयावस्थत्वात्प्राणसामान्यं जीवस्य जीवत्वहेतुरस्त्येव । तथापि तन्न जीवस्य स्वभावत्वमवाप्नोति पुद्गलद्रव्यनिर्वृत्तत्वात् ॥१४७॥
तत्त्व-प्रदीपिका हिंदी :
(व्युत्पत्ति के अनुसार) प्राणसामान्य से जीता है, जियेगा, और पहले जीता था, वह जीव है । इस प्रकार (प्राणसामान्य) अनादि संतानरूप (प्रवाहरूप) से प्रवर्तमान होने से (संसारदशा में) त्रिकाल स्थायी होने से प्राणसामान्य जीव के जीवत्व का हेतु है ही । तथापि वह (प्राण सामान्य) जीव का स्वभाव नहीं है क्योंकि वह पुद्गलद्रव्य से निष्पन्न-रचित है ।