ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 161 - तत्त्व-प्रदीपिका
From जैनकोष
देहो य मणो वाणी पोग्गलदव्वप्पग त्ति णिद्दिट्ठा । (161)
पोग्गलदव्वं हि पुणो पिंडो परमाणुदव्वाणं ॥173॥
अर्थ:
[देह: च मन: वाणी] देह, मन और वाणी [पुद्गलद्रव्यात्मका:] पुद्गलद्रव्यात्मक [इति निर्दिष्टा:] हैं, ऐसा (वीतरागदेव ने) कहा है [अपि पुन:] और [पुद्गल द्रव्य] वे पुद्गलद्रव्य [परमाणुद्रव्याणां पिण्ड:] परमाणुद्रव्यों का पिण्ड है ।
तत्त्व-प्रदीपिका:
अथ शरीरवाङ्मनसां परद्रव्यत्वं निश्चिनोति -
शरीरं च वाक् च मनश्च त्रीण्यपि परद्रव्यं, पुद्गलद्रव्यात्मकत्वात् । पुद्गलद्रव्यत्वं तु तेषां पुद्गलद्रव्यस्वलक्षणभूतस्वरूपास्तित्वनिश्चितत्वात् ।
तथाविधपुद्गलद्रव्यं त्वनेकपरमाणुद्रव्याणामेकपिण्डपर्यायेण परिणाम: । अनेकपरमाणु-द्रव्यस्वलक्षणभूतस्वरूपास्तित्वानामनेकत्वेऽपि कथंचिदकेत्वेनावभासनात् ॥१६१॥
तत्त्व-प्रदीपिका हिंदी :
शरीर, वाणी और मन तीनों ही परद्रव्य हैं, क्योंकि वे पुद्गल द्रव्यात्मक हैं । उनके पुद्गलद्रव्यत्व है, क्योंकि वे पुद्गल द्रव्य के स्वलक्षणभूत स्वरूपास्तित्व में निश्चित (रहे हुए) हैं । उस प्रकार का पुद्गलद्रव्य अनेक परमाणुद्रव्यों का एक पिण्ड पर्यायरूप से परिणाम है, क्योंकि अनेक परमाणुद्रव्यों के स्वलक्षणभूत स्वरूपास्तित्व अनेक होने पर भी कथंचित् (स्निग्धत्व-रूक्षत्वकृत बंधपरिणाम की अपेक्षा से) एकत्वरूप अवभासित होते हैं ॥१६१॥