ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 171 - तत्त्व-प्रदीपिका
From जैनकोष
ओरालिओ य देहो देहो वेउव्विओ य तेजसिओ । (171)
आहारय कम्मइओ पोग्गलदव्वप्पगा सव्वे ॥183॥
अर्थ:
[औदारिक: च देह:] औदारिक शरीर, [वैक्रियिक: देह:] वैक्रियिक शरीर, [तैजस:] तैजस शरीर, [आहारक:] आहारक शरीर [च] और [कार्मण:] कार्मण शरीर [सर्वे] सब [पुद्गलद्रव्यात्मका:] पुद्गलद्रव्यात्मक हैं ।
तत्त्व-प्रदीपिका:
अथात्मन: शरीरत्वाभावमवधारयति -
यतो ह्यौदारिकवैक्रियिकाहारकतैजसकार्मणानि शरीराणि सर्वाण्यपि पुद्गलद्रव्यात्म-कानि । ततोऽवधार्यते न शरीरं पुरुषोऽस्ति ॥१७१॥
तत्त्व-प्रदीपिका हिंदी :
औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मण—सभी शरीर सब पुद्गलद्रव्यात्मक हैं । इससे निश्चित होता है कि आत्मा शरीर नहीं है ॥१७१॥