ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 192 - तात्पर्य-वृत्ति
From जैनकोष
एवं णाणप्पाणं दंसणभूदं अदिंदियमहत्थं । (192)
धुवमचलमणालंबं मण्णेऽहं अप्पगं सुद्धं ॥205॥
अर्थ:
[अहम्] मैं [आत्मकं] आत्मा को [एवं] इस प्रकार [ज्ञानात्मानं] ज्ञानात्मक, [दर्शनभूतम्] दर्शनभूत, [अतीन्द्रियमहार्थं] अतीन्द्रिय महा पदार्थ [ध्रुवम्] ध्रुव, [अचलम्] अचल, [अनालम्बं] निरालम्ब और [शुद्धम्] शुद्ध [मन्ये] मानता हूँ ।
तात्पर्य-वृत्ति:
अथ ध्रुवत्वाच्छुद्धात्मानमेव भावयेऽहमितिविचारयति — 'मण्णे' इत्यादिपदखण्डनारूपेण व्याख्यानं क्रियते --
मण्णे मन्ये ध्यायामि सर्वप्रकारो-पादेयत्वेन भावये । स कः । अहं अहं कर्ता । कं कर्मतापन्नम् । अप्पगं सहजपरमाह्ना-दैकलक्षणनिजात्मानम् । किंविशिष्टम् । सुद्धं रागादिसमस्तविभावरहितम् । पुनरपि किंविशिष्टम् । धुवं टङ्कोत्कीर्णज्ञायकैकस्वभावत्वेन ध्रुवमविनश्वरम् । पुनरपि कथंभूतम् । एवं णाणप्पाणं दंसणभूदं एवंबहुविधपूर्वोक्तप्रकारेणाखण्डैकज्ञानदर्शनात्मकम् । पुनश्च किंरूपम् । अदिंदियं अतीन्द्रियं, मूर्तविनश्वरा-नेकेन्द्रियरहितत्वेनामूर्ताविनश्वरेकातीन्द्रियस्वभावम् । पुनश्च कीद्रशम् । महत्थं मोक्षलक्षणमहापुरुषार्थ-साधकत्वान्महार्थम् । पुनरपि किंस्वभावम् । अचलं अतिचपलचञ्चलमनोवाक्कायव्यापाररहितत्वेनस्वस्वरूपे निश्चलं स्थिरम् । पुनरपि किंविशिष्टम् । अणालंबं स्वाधीनद्रव्यत्वेन सालम्बनं भरितावस्थमपिसमस्तपराधीनपरद्रव्यालम्बनरहितत्वेन निरालम्बनमित्यर्थः ॥२०५॥
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
'[मण्णे]' इत्यादि पद-खण्डना-रूप से व्याख्यान करते हैं -- [मण्णे] मानता हूँ, ध्याता हूँ, सभी प्रकार से उपादेय-रूप से भावना करता हूँ । ऐसा करने वाला वह कौन है ? [अहं] कर्ता-रूप मैं ऐसा करता हूँ । कर्मता को प्राप्त किसे मानता हूँ? [अप्पगं] सहज परमाह्लाद एक-लक्षण निजात्मा को मानता हूँ । वह आत्मा किस विशेषता वाला है? [सुद्धं] रागादि सम्पूर्ण विभावों से रहित शुद्ध है । वह और किस विशेषता वाला है ? [धुवं] टाँकी से उकेरे हुये के समान ज्ञायक एक स्वभाव-रूप होने से ध्रुव--अविनश्वर है । और भी वह कैसा है? [एवं णाणप्पाणं दंसणभूदं] इसप्रकार पहले कहे हुये अनेक प्रकार से अखण्ड एक ज्ञान दर्शन स्वरूप है । और किस स्वरूपवाला? [अदिंदियं] अतीन्द्रिय है, मूर्त विनश्वर अनेक इन्द्रियों से रहित होने के कारण अमूर्त अविनश्वर एक अतीन्द्रिय स्वभाववाला है । और कैसा है? [महत्थं] मोक्ष लक्षण (नामक) महा-पुरुषार्थ का साधक होने से महार्थ है । और भी किस स्वभाव-वाला है? [अचलं] अतिचपल--चंचल मन-वचन-काय के व्यापार से रहित होने के कारण स्व-स्वरूप में निश्चल--स्थिर है । और भी किस विशेषता-वाला है? [अणालंबं] स्वाधीन द्रव्य-रूप होने से आलम्बन सहित भरित--अवस्थ रूप होने पर भी सम्पूर्ण पराधीन--परद्रव्यों के आलम्बन से रहित होने के कारण निरालम्बन स्वरूप है -- ऐसा अर्थ है ।