ग्रन्थ:सर्वार्थसिद्धि - अधिकार 2 - सूत्र 16
From जैनकोष
291. तेषामन्तर्भेदप्रदर्शनार्थमाह -
291. अब उन पाँचों इन्द्रियोंके अन्तर्भेदोंको दिखलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं –
द्विविधानि[1]।।16।।
वे प्रत्येक दो-दो प्रकार की हैं।।16।।
292. ‘विध’शब्द: प्रकारवाची। द्वौ विधौ येषां तानि द्विविधानि, द्विप्रकाराणीत्यर्थ:। कौ पुनस्तौ द्वौ प्रकारौ ? द्रव्येन्द्रियं भावेन्द्रियमिति।
292. विध शब्द प्रकारवाची है। ‘द्विविधानि’ पदमें ‘द्वौ विधौ येषां तानि द्विविधानि’ इस प्रकार बहुव्रीहि समास है। आशय है है कि ये पाँचों इन्द्रियाँ प्रत्येक दो-दो प्रकारकी हैं। शंका – वे दो प्रकार कौन हैं ? समाधान – द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय।
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सर्वार्थसिद्धि अनुक्रमणिका
- ↑ ‘कतिविहाणं भंते इंदिया पण्णत्ता। गोयमा, दुविहा पण्णत्ता। तं जहा – दव्विंदिया य भाविंदिया य –पण्णवणा पद 15।