ग्रन्थ:सर्वार्थसिद्धि - अधिकार 2 - सूत्र 20
From जैनकोष
299. तेषामिन्द्रियाणां विषयप्रदर्शनार्थमाह -
299. अब उन इन्द्रियोंका विषय दिखलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं –
[1]स्पर्शरसगन्धवर्णशब्दास्तदर्था:।।20।।
स्पर्शन, रस, गन्ध, वर्ण और शब्द ये क्रमसे उन इन्द्रियोंके विषय है।।20।।
300. द्रव्यपर्याययो: प्राधान्यविवक्षायां कर्मभावसाधनत्वं स्पर्शादिशब्दानां वेदितव्यम्। द्रव्यप्राधान्यविवक्षायां कर्मनिर्देश:। स्पृश्यत इति स्पर्श:। रस्यत इति रस:। गन्ध्यत इति गन्ध:। वर्ण्यत इति वर्ण:। शब्द्यत इति शब्द:। पर्यायप्राधान्यविवक्षायां भावनिर्देश:। स्पर्शनं स्पर्श:। रसनं रस:। गन्धनं गन्ध:। वर्णनं वर्ण:। शब्दनं शब्द[2] इति। एषां क्रम इन्द्रियक्रमेणैव व्याख्यात:।
300. द्रव्य और पर्यायकी प्राधान्य विवक्षामें स्पर्शादि शब्दोंकी क्रमसे कर्मसाधन और भावसाधनमें सिद्धि जानना चाहिए। जब द्रव्यकी अपेक्षा प्रधान रहती है तब कर्मनिर्देश होता है। जैसे – जो स्पर्श किया जाता है वह स्पर्श है, जो स्वादको प्राप्त होता है वह रस है, जो सूँघा जाता है वह गन्ध है जो देखा जाता है वह वर्ण है और जो शब्दरूप होता है वह शब्द है। इस व्युत्पत्तिके अनुसार ये सब स्पर्शादिक द्रव्य ठहरते हैं। तथा जब पर्यायकी विवक्षा प्रधान रहती है तब भावनिर्देश होता है। जैसे – स्पर्शन स्पर्श है, रसन रस है, गन्धन गन्ध है, वर्णन वर्ण है और शब्दन शब्द है। इस व्युत्पत्तिके अनुसार ये सब स्पर्शादिक धर्म निश्चित होते हैं। इन स्पर्शादिकका क्रम इन्द्रियोंके क्रमसे ही व्याख्यात है। अर्थात् इन्द्रियोंके क्रमको ध्यानमें रखकर इनका क्रमसे कथन किया है।