ग्रन्थ:सर्वार्थसिद्धि - अधिकार 2 - सूत्र 35
From जैनकोष
328. अथान्येषां किं जन्मेत्यत आह –
328. इनसे अतिरिक्त अन्य जीवोंके कौन-सा जन्म होता है। इब इस बातका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं –
शेषाणां संमूर्च्छनम्।।35।।
शेष सब जीवोंका सम्मूर्च्छन जन्म होता है।।35।।
329. गर्भजेभ्य औपपादिकेभ्यश्चान्ये शेषा:। संमूर्च्छनं जन्मेति। एते त्रयोऽपि योगा नियमार्था:। उभयतो नियमश्च द्रष्टव्य:। जरायुजाण्डजपोतानामेव गर्भ:। गर्भ एव च जरायुजाण्डजपोतानाम्। देवनारकाणामेवोपपाद:। उपपाद एव च देवनारकाणाम्। शेषाणामेव संमूर्च्छनम्। संमूर्च्छनमेव शेषाणामिति।
329. इस सूत्रमें ‘शेष’ पदसे वे जीव लिये गये हैं जो गर्भ और उपपाद जन्मसे नहीं पैदा होते। इनके संमूर्च्छन जन्म होता है। ये तीनों ही सूत्र नियम करते हैं। और यह नियम दोनों ओरसे जानना जानना चाहिए। यथा – गर्भ जन्म जरायुज, अण्डज और पोत जीवोंका ही होता है। या जरायुज, अण्डज और पोत जीवोंके गर्भजन्म ही होता है। उपपाद जन्म देव और नारकियोंके ही होता है या देव और नारकियोंके उपपाद जन्म ही होता है। संमूर्च्छन जन्म शेष जीवोंके ही होता है या शेष जीवोंके संमूर्च्छन जन्म ही होता है।