ग्रन्थ:सर्वार्थसिद्धि - अधिकार 2 - सूत्र 47
From जैनकोष
352. यद्यौपपादिकं वैक्रियिकम्, अनौपपादिकस्य वैक्रियिककत्वाभाव इत्यत आह -
352. यदि जो शरीर उपपाद जन्म से पैदा होता है वह वैक्रियिक है तो जो शरीर उपपाद जन्म से नहीं पैदा होता उसमें वैक्रियिकपन नहीं बन सकता । इब इसी बात का स्पष्टीकरण करने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं –
लब्धिप्रत्ययं च।।47।।
तथा लब्धिसे भी पैदा होता है।।47।।
353. ‘च’ शब्देन वैक्रियिकमभिसंबध्यते। तपोविशेषादृद्धिप्राप्तिर्लब्धि:। लब्धि: प्रत्यय: कारणमस्य लब्धिप्रत्ययम्। वैक्रियिकं लब्धिप्रत्ययं च भवतीत्यभिसंबध्यते।
353. सूत्र में ‘च’ शब्द आया है। उससे वैक्रियिक शरीर का सम्बन्ध करना चाहिए। तप-विशेष से प्राप्त होने वाली ऋद्धि को लब्धि कहते हैं। इस प्रकार की लब्धि से जो शरीर उत्पन्न होता है वह लब्धिप्रत्यय कहलाता है। वैक्रियिक शरीर लब्धिप्रत्यय भी होता है - ऐसा यहाँ सम्बन्ध करना चाहिए।