ग्रन्थ:सर्वार्थसिद्धि - अधिकार 2 - सूत्र 48
From जैनकोष
354. किमेतदेव लब्ध्यपेक्षमुतान्यदप्यस्तीत्यत आह –
354. क्या यही शरीर लब्धि की अपेक्षा से होता है या दूसरा शरीर भी होता हे। अब इसी बात का ज्ञान कराने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं –
तैजसमपि।।48।।
तैजस शरीर भी लब्धि से पैदा होता है।।48।।
355. ‘अपि शब्देन लब्धिप्रत्ययमभिसंबध्यते। तैजसमपि लब्धिप्रत्ययं भवतीति।,
355. सूत्र में ‘अपि’ शब्द आया है। उससे ‘लब्धिप्रत्ययम्’ पद का ग्रहण होता है। तैजस शरीर भी लब्धिप्रत्यय होता है यह इस सूत्र का भाव है।