चरखा चलता नाहीं (रे) चरखा हुआ पुराना (वे)
From जैनकोष
(राग आसावरी)
चरखा चलता नाहीं (रे) चरखा हुआ पुराना (वे) ।।
पग खूंटे दो हालन लागे, उर मदरा खखराना ।
छीदी हुई पांखड़ी पांसू, फिरै नहीं मनमाना ।।१ ।।
रसना तकली ने बल खाया, सो अब कैसै खूटै ।
शब्द-सूत सूधा नहिं निकसे, घड़ी-घड़ी पल-पल टूटै ।।२ ।।
आयु मालका नहीं भरोसा, अंग चलाचल सारे ।
रोज इलाज मरम्मत चाहे, वैद्य बढ़ई हारे ।।३ ।।
नया चरखला रंगा-चंगा, सबका चित्त चुरावै ।
पलटा वरन गये गुन अगले, अब देखैं नहिं भावै ।।४ ।।
मोटा मही कातकर भाई!, कर अपना सुरझेरा ।
अंत आग में इंर्धन होगा, `भूधर' समझ सवेरा ।।५ ।।