जग में श्रद्धानी जीव जीवन मुकत हैंगे
From जैनकोष
(राग बङ्गाला)
जगमें श्रद्धानी जीव जीवन मुकत हैंगे ।।टेक ।।
देव गुरु सांचे मानैं, सांचो धर्म हिये आनैं ।
ग्रन्थ ते ही सांचे जानैं, जे जिन उकत हैंगे ।।१ ।।जगमें. ।।
जीवनकी दया पालैं, झूठ तजि चोरी टालें ।
परनारी भालैं नैंन जिनके लुकत हैंगे ।।२ ।।जगमें. ।।
जिय में सन्तोष धारैं, हियैं समता विचारैं ।
आगैंको न बंध पारैं, पाछैंसौं चुकत हैंगे ।।३ ।।जगमें. ।।
बाहिज क्रिया आराधैं, अन्दर सरूप साधैं ।
`भूधर' ते मुक्त लाधैं, कहूँ न रुकत हैंगे ।।४ ।।जगमें. ।।