जिन स्वपरहिताहित चीन्हा
From जैनकोष
( राग दीपचन्दी जोड़ी )
जिन स्वपर हिताहित चीन्हा, जीव तेही हैं साचै जैनी ।।टेक ।।
जिन बुधछैनी पैनीतैं जड़, रूप निराला कीना ।
परतैं विरच आपमें राचे, सकल विभाव विहीना ।।१ ।।
पुन्य पाप विधि बंध उदय में, प्रमुदित होत न दीना ।
सम्यकदर्शन ज्ञान चरन निज, भाव सुधारस भीना ।।२ ।।
विषयचाह तजि निज वीरज सजि, करत पूर्वविधि छीना ।
`भागचन्द' साधक ह्वै साधत, साध्य स्वपद स्वाधीना ।।३ ।।