धनि ते प्रानि, जिनके तत्त्वारथ श्रद्धान
From जैनकोष
( राग दादरा )
धनि ते प्रानि, जिनके तत्त्वारथ श्रद्धान ।।टेक ।।
रहित सप्त भय तत्त्वारथ में, चित्त न संशय आन ।
कर्म कर्मफल की नहिं इच्छा, पर में धरत न ग्लानि ।।१ ।।
सकल भाव में मूढ़दृष्टि तजि, करत साम्यरस पान ।
आतम धर्म बढ़ावैं वा, परदोष न उचरैं वान ।।२ ।।
निज स्वभाव वा, जैनधर्म में, निज पर थिरता दान ।
रत्नत्रय महिमा प्रगटावैं, प्रीति स्वरूप महान ।।३ ।।
ये वसु अंग सहित निर्मल यह, समकित निज गुन जान ।
`भागचन्द' शिवमहल चढ़न को, अचल प्रथम सोपान ।।४ ।।