निपट गंवार बीरा! थारी बान बुरी परी रे, बरज्यो मानत नाहिं
From जैनकोष
(राग सोरठ)
बीरा! थारी बान बुरी परी रे, बरज्यो मानत नाहिं ।।टेक ।।
तू हटसौं ऐसै रमै रे, दीवे पड़त पतंग ।।१ ।।बीरा. ।।
ये सुख हैं दिन दोयकै रे, फिर दु:ख की सन्तान ।
करै कुहाड़ी लेइकै रे, मति मारै पग जान ।।२ ।।बीरा. ।।
तनक न संकट सहि सकै रे! छिनमें होय अधीर ।
नरक विपति बहु दोहली रे, कैसे भरि है वीर ।।३ ।।बीरा. ।।
भव सुपना हो जायेगा रे, करनी रहेगी निदान ।
`भूधर' फिर पछतायगा रे, अबही समझि अजान ।।४ ।।बीरा. ।।