परनति सब जीवनकी
From जैनकोष
परनति सब जीवनकी, तीन भाँति वरनी ।
एक पुण्य एक पाप, एक रागहरनी ।।टेक ।।
तामे शुभ अशुभ अंध, दोय करैं कर्मबंध ।
वीतराग परनति ही, भवसमुद्रतरनी ।।१ ।।
जावत शुद्धोपयोग, पावत नाहीं मनोग ।
तावत ही करन जोग, कही पुण्य करनी ।।२ ।।
त्याग शुभ क्रियाकलाप, करो मत कदाच पाप ।
शुभमें न मगन होय, शुद्धता विसरनी ।।३ ।।
ऊँच ऊँच दशा धारि, चित्त प्रमाद को विडारि ।
ऊँचली दशातैं मति, गिरो अधो धरनी ।।४ ।।
`भागचन्द' या प्रकार, जीव लहै सुख अपार ।
याके निरधार स्याद-वाद की उचरनी ।।५ ।।