प्रभु गुन गाय रै, यह औसर फेर न पाय रे
From जैनकोष
(राग ख्याल)
प्रभु गुन गाय रै, यह औसर फेर न पाय रे ।।टेक ।।
मानुष भव जोग दुहेला, दुर्लभ सतसंगति मेला ।
सब बात भली बन आई, अरहन्त भजौ रे भाई ।।१ ।।प्रभु. ।।
पहले चित-चीर संभारो कामादिक मैल उतारो ।
फिर प्रीति फिटकरी दीजे, तब सुमरन रंग रंगीजे ।।२ ।।प्रभु. ।।
धन जोर भरा जो कूवा, परिवार बढ़ै क्या हूवा ।
हाथी चढ़ि क्या कर लीया, प्रभु नाम बिना धिक जीया ।।३ ।।प्रभु. ।।
यह शिक्षा है व्यवहारी, निहचै की साधनहारी ।
`भूधर' पैडी पग धरिये, तब चढ़ने को चित करिये ।।४ ।।प्रभु. ।।