प्रानी समकित ही शिवपंथा
From जैनकोष
(राग दीपचन्दी सोरठ)
प्रानी समकित ही शिवपंथा । या विन निर्फल सब ग्रंथा ।।टेक ।।
जा बिन बाह्यक्रिया तप कोटिक, सकल वृथा है रंथा ।।१ ।।
हयजुतरथ भी सारथ विन जिमि, चलत नहीं ऋजु पंथा ।।२ ।।
`भागचन्द' सरधानी नर भये, शिवलछमीके कंथा ।।३ ।।