मत
From जैनकोष
मिथ्यामत–देखें एकांत - 5।
सर्व एकांत मत मिलकर एक जैनमत बन जाता है–देखें अनेकांत - 2.6।
कोई भी मत सर्वथा मिथ्या नहीं–देखें नय - II।
सम्यग्दृष्टि में परस्पर मतभेद नहीं होता–देखें सम्यग्दृष्टि - 4।
आगम गत अनेक विषयों में आचार्यों का मतभेद–देखें दृष्टिभेद ।