मन हंस! हमारी लै शिक्षा हितकारी!
From जैनकोष
(राग काफी)
मन हंस! हमारी लै शिक्षा हितकारी!
श्रीभगवान चरन पिंजरे वसि, तजि विषयनि की यारी ।।
कुमति कागलीसौं मति राचो, ना वह जात तिहारी ।
कीजै प्रीत सुमति हंसीसौं, बुध हंसन की प्यारी ।।१ ।।मन. ।।
काहेको सेवत भव झीलर, दुखजलपूरित खारी ।
निज बल पंख पसारि उड़ो किन, हो शिव सरवर चारी ।।२ ।।मन. ।।
गुरुके वचन विमल मोती चुन, क्यों निज वान विसारी ।
ह्वै है सुखी सीख सुधि राखें, `भूधर' भूलैं ख्वारी ।।३ ।।मन. ।।