मान न कीजिये हो परवीन
From जैनकोष
( राग मल्हार )
मान न कीजिये हो परवीन ।।टेक ।।
जाय पलाय चंचला कमला, तिष्ठै दो दिन तीन ।
धनजोवन क्षणभंगुर सब ही, होत सुछिन छिन छीन ।।१ ।।
भरत नरेन्द्र खंड-षट-नायक, तेहु भये मद हीन ।
तेरी बात कहा है भाई, तू तो सहज ही दीन ।।२ ।।
`भागचन्द' मार्दव-रससागर, माहिं होहु लवलीन ।
तातैं जगतजाल में फिर कहूँ, जनम न होय नवीन ।।३ ।।