योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 396
From जैनकोष
ग्राह्य उपधि/परिग्रह का स्वरूप -
न यत्र विद्यते च्छेद: कुर्वतो ग्रह-मोक्षणे ।
द्रव्यं क्षेत्रं परिज्ञाय साधुस्तत्र प्रवर्तताम् ।।३९६।।
अन्वय :- द्रव्यं क्षेत्रं परिज्ञाय ग्रह-मोक्षणे कुर्वत: यत्र च्छेद: न विद्यते तत्र साधु: प्रवर्तताम् ।
सरलार्थ :- द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को भले प्रकार जानकर जिन बाह्य परिग्रह का ग्रहणत्य ाग करते हुए साधु के दोष नहीं लगते, उनमें साधु को प्रवृत्त होना चाहिए ।