योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 399
From जैनकोष
जिनधर्म में स्त्रियों के लिंग संबंधी प्रश्न -
यत्र लोकद्वयापेक्षा जिनधर्मे न विद्यते ।
तत्र लिङ्गं कथं स्त्रीणां सव्यपेक्षमुदाहृतम् ।।३९९।।
अन्वय :- यत्र जिनधर्मे लोकद्वयापेक्षा न विद्यते तत्र स्त्रीणां लिङ्गं सव्यपेक्षं कथम् उदाहृतम्?
सरलार्थ :- जिस जिनेन्द्र से उपदेशित वीतराग धर्म में दोनों लोकों की अपेक्षा नहीं पायी जाती अर्थात् इहलोक तथा परलोक को लक्ष्य करके धर्म नहीं किया जाता, उस जिनधर्म में स्त्रियों के लिंग को अपेक्षा सहित/वस्त्र-प्रावरण की अपेक्षा रखनेवाला कैसे कहा गया?