योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 424
From जैनकोष
आगम के अध्ययन में प्रवृत्ति की प्रेरणा -
एकाग्रनस: साधो: पदार्थेषु विनिश्चय: ।
यस्मादागमतस्तस्मात् तस्मिन्नाद्रियतां तराम् ।।४२४।।
अन्वय :- यस्मात् एकाग्रनस: साधो: पदार्थेषु विनिश्चय: आगमत: (भवति) । तस्मात् तस्मिन् (आगमे) तराम् आद्रियताम् ।
सरलार्थ :- तीन लोक में स्थित सर्व पदार्थ संबंधी यथार्थ निर्णय/निश्चय एकाग्रचित्त के धारक साधु को जिनेन्द्रकथित आगम के अध्ययन से ही होता है । इसलिए साधु को विशेष आदर से आगम में प्रवृत्ति करना चाहिए अर्थात् आगम एवं परमागम का अध्ययन अत्यंत सूक्ष्मता से तथा सन्मानपूर्वक करना आवश्यक है ।